दिवाली का तोहफा

दिवाली का तोहफा
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दिवाली का तोहफा

रामपुर गाँव की बात हैं| उस गाँव में एक सात लोगों का परिवार रहता था | परिवार काफी बड़ी थी और उस घर मे कमाने वाले की कमी थी| दो छोटे-छोटे बच्चे भी थें |

वो बच्चें जब भी बाहर दूसरे बच्चों साथ खेलने निकलते उन बच्चों को देखकर भावुक हो जाता क्युंकि उनके पास खेलने को बहुत खिलौने रहते थें| और जब भी वो घर आता खेलकर तब अपने घर मे बताता तो घर वाले डाँट दिया करते थें| वो बेचारे बच्चें रोते और सो जाते|

ऐसे ही यह सिलसिला चलते रहा और बच्चें थोड़े बड़े हो गए| फिर भी घर के हालात ठीक नहीं हुए| फिर बच्चों के स्कूल जाने का उम्र हो गया और दोनों का एक छोटा सा स्कूल मे दाखिला हुआ| वहाँ भी बच्चें थे वो काफी हाई- फाइ में रहते थें|

तो उन बच्चों को देखकर इन दोनों का भी मन करता की खास मेरे घर में भी इतने पैसे होते तो हम भी ऐसे ही रहते| यैसे ही वक़्त बीतता गया एक दिन दीवाली छट पूजा का समय आ गया और स्कूल की छुट्टी शुरू हो गई|

दोनों ने अपने पापा को बाजार जाने का जिद करने लगे और फुलझरिया लेने की जिद करने लगे| उनके जिद को देखकर उनके पापा फुलझरिया लेने के लिए मान गए |

उन्होंने बच्चें को फुलझरिया तो दिला दी लेकिन जब पैसे देनें का वक़्त आया तो उसने अपने जेब मे हाथ डाली तो बस जेब मे कुछ चिल्लर पड़े थे जिससे फुलझरिया की कीमत न हो पाती| उन बच्चों के पापा ने दुकानदार को उधार देनें को कहा और बोला की कल आकर दे दूँगा|

लेकिन दुकानदार ने न मानी और अंत मे वो फुलझरिया उसे लौटानी पड़ी| जिससे बच्चें के चेहरे वापस से लटक गए| और वापस घर चले गये| जिससे पापा को काफी बुरा लगा और वो दुखी हो गए|

और उसके बाद उसने सोचा की क्यों न कुछ करने की सोचे ताकि मैं भी कुछ अच्छा कमा सकू और उसने थोड़ा बहुत पैसे कामना शुरू कर दिया और उनके बच्चें खुश रहने लगे|

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