मन की शांति

Lakshmi Photo by Tapas Ghosh from Pexels
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Lakshmi Photo by Tapas Ghosh from Pexels

मन की शांति

 एक बार भगवान विष्णु ने याचकों को उन्हें आज जो कुछ भी मांगेंगे वह देने का फैसला किया। आज सबकी मनोकामना पूर्ण होगी।  सभी याचक एक पंक्ति में खड़े हो गए और उनसे भगवान विष्णु ने पूछा कि वे क्या चाहते हैं।  कोई दौलत मांग रहा था, कोई बच्चों के लिए, कोई सेहत के लिए तो कोई शोहरत के लिए।

 विष्णु दोनों हाथों से भर-भर के दे रहे थे।  लक्ष्मी ने देखा कि, विष्णु का खजाना धीरे-धीरे खाली हो रहा है।  फिर उसने विष्णु का हाथ पकड़कर कहा, यदि आप इसी तरह देना जारी रखते हैं, तो वैकुंठ की सारी महिमा कुछ ही क्षणों में ख़त्म हो जाएगी। आप यह सब क्या कर रहे है? और क्यों?

 विष्णु ने चेहरे पर मुस्कान के साथ उत्तर दिया, ‘चिंता मत करो।  मेरे पास एक और संपत्ति सुरक्षित है।  किसी भी मानव, गंधर्व, किन्नर ने अभी तक इसकी मांग नहीं की है।  जब तक आपके पास वह दौलत है, चिंता न होगी, भलेही आपको उसके बदले कुछ और चुकाना पड़े।’

 लक्ष्मी ने पूछा, ‘हमें बताओ कि हमारे पास अब क्या है, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। ‘विष्णु ने कहा,’ वह है शांति ! इसलिए मैंने मन:शांति बनाए रखी है। यही हमारी असली दौलत है’।

क्या कहती है यह कहानी?

यह कहानी पौराणिक कथा पर आधारित है। एकबार भगवान विष्णु ने यह फैसला किया कि, याचकों को वह जो चाहे वह दे देंगे। एकदिन उनके यहाँ आये सभी याचकों को उन्होंने जो कुछ भी मांगा वह उनको देने लगे। धन-दौलत, कोई निसंतान महिला की बच्चे की माँग, किसी ने अच्छी सेहत, तो किसी ने यश और कीर्ति को मांगा। भगवान विष्णु अपने दोनों हाथों और वरदान से उन्हें सबकुछ बाँट रहे थे। विष्णु पत्नी ने यह सब देखकर उन्हें रोका और उनसे कहा कि, ऐसे ही सबकुछ बाँटते रहोगे तो हमारे पास कुछ भी नही बचेगा।

भगवान विष्णु ने प्रतिउत्तर में पत्नी लक्ष्मी से कहा, मेरी असली संपत्ति ‘शांति’ है और वह मेरे पास है। मन की शांति !

कहानी से सीख :

कहानी यह दर्शाती है कि, धन की लालसा, शोहरत की होड़ ने हमे कैसे अशांत कर दिया है। इन सब चीजों को पाने की चाहत में हमने अपनी शांति को खो दिया, दिल के चैन को खोया है। जब हम इसका त्याग करेंगे या हमारे पास यह सब चीजें नही रहेगी तो आप एक मन:शांति पा सकते है, मन की शांति!

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