गर्विष्ठमोर और बुद्धिमान कर्कोचा

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गर्विष्ठमोर और बुद्धिमान कर्कोचा

एक नदी किनारे की झाड़ी में एक मोर रहा करता था। वह बहुत अहंकारी था। उसे अपने रूप पर बहुत गर्वथा। वह रोज नदी पर जाता था। नदी किनारे पानी में अपना प्रतिबिंब देखता था। मन ही मन अपनी सुंदरता की प्रशंसा भी करता था। अपने सुन्दरता के लिए मोर कहा करता था, “देखो मेरे फूले हुए पंख! उस पंख पर सुंदर सुनहरे रंग देखो! मेरी तरफ देखो मैं दुनिया के सभी पक्षियों में सबसे सुंदर हूं।”

फिर एक दिन मोर ने नदी के किनारे एक मगरमच्छ को देखा। मोर ने मगरमच्छकी खाल को देखा और उसे चिढाते हुए मुँह फेर लिया। फिर एकबार उसने कर्कोचे से तिरस्कार से कहा, “तुम कितने बेरंग हो! तुम्हारे पंख सफेद और पीले हैं।” कर्कोचा ने जवाब में कहा, “मित्र, तुम्हारे पंख अवश्य ही सुंदर है। मेरे पंख तुम्हारे जितने शायद सुंदर नहीं हैं। मगर क्या हुआ? आप तो अपने पंखों से ऊंची उड़ान भर नहीं सकते। लेकिन मैं अपने पंखों से आसमान में दूर-दूर तक ऊंची उड़ान भर सकता हूं।” इतना कहने के बाद कर्कोचा की पलक ऊंची उठ गई। उसने मोर के सामने ही आसमान में उड़ान भरी। मोर शर्मिंदा हो गया और उसे देखता ही रहा।

क्या कहती है यह कहानी !

अर्थऔर बोध

कहानी का पात्रमोर अपनी मखमली और रंगीन पंखोपर गरूर करता है, उसकी सुन्दरता पर गर्वकरता है, औरों को चिढ़ाता भी है। कहानी का दूसरा पात्रसंयमी है और उसने मोर की सुन्दरता का यह घमंड सिर्फएक वाक्य से उतारा उसने करारा जवाब देते हुए कहा की, भले ही मेरे पंख तुम्हारे इतने सुन्दर ना हो, लेकिन मै इन पंखो के बलपर ऊँची और लम्बीउड़ान भर सकता हूँ; जो की, तुम्हारे सुन्दर पंख इसके काबिल नहीं है। चतुर कर्कोचे ने घमंडी मोर के पंख की कमी को दर्शाते हुए उसके सामने वहाँ से ऊँची उड़ान भरी। यहाँ इधर मोर भोचक्कारहकर बहुत शर्मिंदा हो गया।

 कहानी से सिख :

गर्विष्ठमोर और बुद्धिमान करकोचा कहानी यह दर्शाती है की, किसी भी दिखावटी सुंदरता की तुलना में उसकी या अपनी उपयोगिता अधिक जरुरी होती है।

इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की, आप अपनी सुन्दरता का गर्वकीजिए मगर किसी की निंदा या ऊसे निचा दिखाने की कोशिश मत कीजिए। नहीं तो एक ना एक दिन यह ‘कर्कोचा’ मिल जाएगा। याद रखे किसी भी बाह्यसौंदर्यके बजाय उस चीज की उपयोगिता या परिणामकारकता भी महत्वपूर्णहोती है।

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