अधिकमास, अधिमास, मलमास – क्या है

Moon @pexels.com
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 समय की गणना के लिये हम सौरमण्डल के दो प्रमुख आकाशीय पिण्डों–सूर्य और चंद्रमा पर निर्भर करते हैं। हमारे कैलेण्डर/पंचांग में दर्ज दिन, तिथि, माह आदि इन दो ग्रहों की गति और स्थिति पर आधारित होते हैं। सो, ऐसी काल-गणना सूर्य पर अवलंबित हो सकती है, अथवा चांद पर।

हालांकि इन दोनों ग्रहों की स्थिति, गति, आकार आदि में काफी भिन्नता होने से सौर-वर्ष और चंद्र-वर्ष में भी साल भर में दस-ग्यारह दिनों का अंतर आ जाता है। सौर-वर्ष ३६५_१/४ दिनों का, जबकि चंद्र-वर्ष लगभग ३५४ दिन का ही माना जाता है। यह अंतर तीन वर्ष में करीब एक माह का हो जाता है, जिसे एक महीने का चंद्रमास बढ़ाकर पूरा कर दिया जाता है।

इसे ही अधिकमास, अधिमास या मलमास कहते हैं। इसके पीछे पूरा एक वैज्ञानिक नज़रिया है। वस्तुतः, अधिमासों की व्यवस्था की वजह से ही हम सभी अपने त्यौहार यथासमय मना पाते हैं, अन्यथा त्यौहारों का क्रम ही बिगड़ जाता।


 इस साल आश्विन माह का अधिमास है; अर्थात् दो आश्विन मास होंगे। यानी, तीन सितम्बर से ३१ अक्तूबर तक सिर्फ़ आश्विन मास के अंतर्गत गिना जायेगा। इस वर्ष अंग्रेजी कैलेण्डर का ‘लीप ईयर’ भी है। उसकी अवधारणा भी इससे मिलती-जुलती ही है।

जानकारों का मानना है कि यह संयोग १६० साल बाद आया है, जब दोनों साथ-साथ पड़े। जबकि आश्विन मास का अधिकमास उन्नीस साल पहले २००१ में आया था। यह वक्त श्राद्ध, नवरात्र, दशहरा, दीवाली जैसे त्यौहारों का होता है।

आमतौर पर श्राद्ध-पक्ष के ठीक अगले ही दिन से नवरात्रि प्रारंभ हो जाती है, जिसके बाद दशहरा पड़ता है। पर इस बार ऐसा नहीं होगा। इस साल सत्रह सितम्बर को श्राद-पक्ष ख़त्म होते ही अगले दिन से मलमास लग जायेगा, जो आगामी सोलह अक्तूबर तक चलेगा।

फिर सत्रह अक्तूबर से शारदीय नवरात्र शुरू होंगे, और  उसके बाद दशहरा आदि। अर्थात्, कुल मिलाकर देखें तो श्राद्ध के बाद आने वाला हर त्यौहार करीब पंद्रह-बीस दिन पीछे खिसक गया। पर ये कालखण्ड अंततः आपस में समायोजित हो जाते हैं, यही तो अधिकमास की वैज्ञानिकता है।


 इस अतिरिक्त जोड़े जाने वाले माह में कोई सूर्य-संक्रांति न पड़ने से इसे मलिन माह माना गया, और इस तरह इसे मलमास नाम मिला। हिंदू-मान्यताओं के अनुसार ऋषियों ने सभी महीनों के देवता निर्धारित कर दिये, पर सूर्य और चंद्रमा में संतुलन साधने जैसा दुरूह काम होने से अधिमास का अधिपति बनने को कोई तैयार न हुआ। तब ऋषिगणों की प्रार्थना पर भगवान् विष्णु ने, जिनका एक नाम पुरुषोत्तम भी है, यह दायित्व स्वीकार किया। इसीलिये इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं।

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