रिया की मीडिया… (एक व्यंग्य)

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जान पर खेलकर ऐसी ‘कॉन्फिडेंशियल’ खबरें लोगों तक पहुंचाने के लिये मीडिया मुगलों का शुक्रिया। जनहित के ऐसे धांसू मुद्दों से हम आखिर कब तक अनजान बने रहेंगे! आज रीया निकली है, कल कंगना निकलेगी.. परसों कोई और। पर हम किसी काम के नहीं; हम अपनी उलझनों से बाहर ही न निकल पायेंगे..


 आज सुशांत जिंदा नहीं है। जब जिंदा था तो पता ही न चला कि कब और कैसे मौत हो गई। अब पता लगा रहे हैं। जाने क्यूँ जिंदगी का पता हमें मृत्यु की पृष्ठभूमि में ही मिल पाता है। अब सुशांत न सही पर रिया, अंकिता वगैरह तो जिंदा हैं। उनकी अपनी भी जिंदगी है। जो सबकी टीआरपी कायम रखने को काफी है। 

 अब चैनल वालों की भी अपनी मजबूरियाँ हैं, जो समझी जा सकती हैं। ‘ज्यादा’ बोल नहीं सकते, और कम बोलने पर धंधा बंद होने का ख़तरा है। अजीब धर्मसंकट में फंसे हैं। आखिर इनके भी बीवी-बच्चे हैं, बड़े सपने हैं। फिर भी सबकुछ दांव पर लगाकर हमें ऐसी दिलकश खबरें पहुंचाते हैं। इनके लिये हृदय से साधुवाद…

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