चमत्कारी बटुआ

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किसी  गांव में  अमृत  नाम का एक आदमी  रहता था उसका एक छोटा -सा परिवार था। उसके परिवार में  एक बेटा और बेटी के  अलावा  उसकी पत्नी  राशि थी। 


अमृत  को अपने परिवार के पालन-पोषण के  लिए  कड़ी  मेहनत करनी पड़ती थी ।वह शहर से कपड़ा  खरीद कर  लाता  था  और  फिर  उसे साइकिल पर  रखकर गांव-गांव  जाकर बेचता था। इस तरह उसे बहुत अधिक  मेहनत करनी पड़ती थी  और  शाम तक वह बहुत थक जाता था ।


 इसी कारण वह  अपनी जिंदगी से काफी  परेशान था और  अक्सर  बड़बड़ाता  रहता था कि -” मैं तो  बदनसीब आदमी हूं  जो मुझे  इतनी  मेहनत करनी पड़ती है । अगर  मेरे  पास  खूब  सारे पैसे होते तो मैं  बिलकुल  काम  न करता  । खूब  खाता- पीता ,  आराम  करता  और सोता। मैं  सारी जिंदगी  घर से बाहर  भी नहीं  निकलता ।”


एक दिन  दोपहर  के  समय  अमृत  कपड़ा  बेचने के लिए  पास  के गांव  जा रहा था। गर्मी  बहुत थी। तपती  धूप ने अमृत को  बुरी तरह  थका दिया था और  वह पसीने में  नहाने  लगा था । इसलिए वह एक छायादार  पीपल  के नीचे  आराम करने के लिए बैठ गया । वहां  बैठे  -बैठे  भी वह पैसे के  नाम पर  अपने  भाग्य को  कोसने में  लगा था ।बड़बड़ा रहा था कि -अगर  उसके पास  ढेर  सारे पैसे  होते तो  उसे मेहनत  नहीं  करनी  पड़ती और मेहनत  नहीं  करनी  पड़ती  तो वह बहुत  खुश  होता ! 


उस पीपल के पेड़ पर  दो परियां  रहती  थीं  । उन्होंने  अमृत को  पैसे के लिए  दुखी देखा तो वे उसके  सामने  प्रकट  हुईं  और  उसे एक चमत्कारी बटुआ देते हुए कहा  -” तुम  इस बटुए से जितना पैसा  मांगोगे  यह तुम्हें  तुरंत  दे देगा और  इस तरह  तुम्हें  पैसे की कमी  कभी  नहीं  होगी।  न ही तुम्हें  मेहनत  करनी पड़ेगी और तुम  आराम  ही आराम  कर सकोगे ।” 


अमृत  चमत्कारी  बटुआ  पाकर बहुत  खुश  हुआ  और  उसे अपनी  जेब में  रख कर वापस  घर की ओर चल दिया  ।मगर  तभी  परियों  ने पीछे  से आवाज़  देकर कहा  -” जब इस चमत्कारी  बटुए की तुम्हें  जरूरत  न हो तो इसे हमें  वापस  लौटा जाना ।” अमृत  ने ‘हां’ में  सिर हिलाया  और  वहां  से भाग  लिया ।


चमत्कारी  बटुआ  पाकर  अमृत  का जीवन  ही बदल गया  । उसने  आलीशान  घर बना  लिया  ,महंगी  मोटर कार  खरीद ली,बच्चे  अच्छे  स्कूल  में  पढ़ने लगे  और पत्नी  सोने के गहनों से लदी  रहने लगी।  और सबसे बड़ी  बात  यह कि  अमृत  अब घर पर ही रहने लगा । अब आराम करने  और सोने के सिवा  उसके  पास कोई काम  न बचा ।


इन सबमें  अमृत को  कुछ  दिन  तो बहुत मज़ा  आया मगर  फिर  यही  पैसा,  ठाट -बाट और आराम  उसे चुभने लगा ।बच्चों  ने पढ़ाई -लिखाई छोड़ दी ।उसने पढ़ने को बोला तो उन्होंने  ने जवाब दिया कि  जब तक उनके पास  चमत्कारी बटुआ है ,उन्हें  पढ़ने, काम  या मेहनत  करने की क्या  जरूरत है  ? पैसा  तो उन्हें  कमाना है नहीं , वह तो चमत्कारी  बटुआ  दे देगा। यही  हाल  उसकी  पत्नी का भी था । बच्चे  और उसकी  पत्नी  अक्सर  घर से बाहर  पैसा  खर्चते फिरते थे । किसी  को किसी  की परवाह  न  थी ।सब बस चमत्कारी  बटुए के ही पीछे  पड़े  रहते थे ।


अमृत  का हाल  तो उनसे भी बुरा था ।दिन -रात खाना  -पीना  ,आराम करना और सोना उसके  लिए  सज़ा  बन गया था  ।मेहनत के  अभाव  में  शरीर  में  मोटापा और गंभीर  रोग  लग गए थे और  अब उसे  लगने लगा था कि  इस पैसे  और आराम से  अच्छा तोवह मेहनत का पसीना व थकान थी जो शरीर  और मन दोनों  को  स्वस्थ  रखते थे। पैसे  की जरूरत  थी  तो सारा परिवार  श्रम  व कर्म  का मतलब  समझता था । पर अब तो न पैसे की अहमियत है और न ही कर्म की । 


इसी के साथ  उसकी  आंखें  खुल गईं और वह जीवन  का सही  अर्थ  समझ  गया कि  – जीवन  का मतलब  खाना-पीना, सोना और आराम करना  नहीं बल्कि श्रम और  कर्म  करना है । इसी के साथ  वह यह भी समझ  गया कि  बिना  मेहनत के  आया  पैसा  व्यर्थ  के कार्यों  पर खर्च  होता है  व जीवन को भी व्यर्थ  बनाता है  । जैसे  ही उसे इस सत्य का  एहसास  हुआ  वह तुरंत  चमत्कारी बटुआ  उन परियों  को वापस  लौटा  आया  और  घर आकर  चैन की  सांस ली ।


शिक्षा  : जीवन का  सच्चा सुख  श्रम, कर्मऔर संतोष  में ही निहित है ।

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