दो बीज

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दो बीज थे। एक बड़ा और दूसरा छोटा। एक दिन दोनों धरती की गोद में गिर पड़े। तभी तेज आंधी आई और मिट्टी ने उन्हें ढंक दिया। दोनों रातभर मिट्टी के नीचे सुख की नींद सोए। प्रातः काल दोनों जगे तो एक के अंकुर फूट गये, और वह ऊपर उठने लगा।

यह देख छोटा बीज बोला — भैया ऊपर मत जाना, वहां बहुत भय है। लोग तुझे रौंद डालेंगे, मार डालेंगे। बड़ा बीज सब सुनता रहा और चुपचाप ऊपर उठता रहा। धीरे धीरे धरती की परत पार कर ऊपर निकल आया और बाहर का सौंदर्य देख कर मुस्कुराने लगा। सूर्य देवता ने उसे स्नेह से धूप स्नान कराया और पवन देव ने पंखा डुलाया। वर्षा आई और शीतल जल पिला गई। किसान आया और चक्कर लगा कर चला गया। बड़ा बीज बढ़ता ही गया। झूमता – लहलहाता, फूलता और फलता हुआ एक दिन परिपक्व अवस्था तक जा पहुंचा। जब वह इस संसार से विदा हुआ तो अपने जैसे असंख्य बीच छोड़ कर हंसता और आत्मसंतोष अनुभव करता हुआ विदा हो गया।

मिट्टी के अंदर दबा छोटा बीज  अब यह देखकर पछता रहा था कि भय और संकीर्णता के कारण मैं जहां था, वहीं पड़ा रहा और मेरा भाई असंख्य गुना समृद्धि पा गया।

शिक्षा — इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें निडर हो कर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

लेखिका — सुशी सक्सेना
इंदौर

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